Forex Market : डॉलर के मुकाबले सोमवार को रुपये काफी कमजोर खुला। आज डॉलर के मुकाबले रुपया 21 पैसे की कमजोरी के साथ 71.39 रुपये के स्तर पर खुला। इससे पहले शुक्रवार को रुपया 14 पैसे कमजोर होकर 71.18 रुपये के स्तर पर बंद हुआ था।
बीतों दिनों का हाल
-शुक्रवार को रुपया 14 पैसे कमजोर होकर 71.18 के स्तर पर बंद हुआ है। -रुपये गुरुवार को 20 पैसे बढ़कर 71.05 के स्तर पर बंद हुआ है। -रुपया बुधवार को 20 पैसे टूटकर 71.24 के स्तर पर बंद हुआ। -रुपया मंगलवार को 11 पैसे टूटकर 71.04 के स्तर पर बंद हुआ। -रुपया सोमवार को 43 पैसे टूटकर 70.93 के स्तर पर बंद हुआ।
क्यों होता है रुपया कमजोर या मजबूत
रुपये की कीमत पूरी तरह इसकी मांग एवं आपूर्ति पर निर्भर करती है। इस पर आयात एवं निर्यात का भी असर पड़ता है। दरअसल हर देश के पास दूसरे देशों की मुद्रा का भंडार होता है, जिससे वे लेनदेन यानी सौदा (आयात-निर्यात) करते हैं। इसे विदेशी मुद्रा भंडार कहते हैं। समय-समय पर इसके आंकड़े रिजर्व बैंक की तरफ से जारी होते हैं। विदेशी मुद्रा भंडार के घटने और बढ़ने से ही उस देश की मुद्रा पर असर पड़ता है। अमेरिकी डॉलर को वैश्विक करेंसी का रुतबा हासिल है। इसका मतलब है कि निर्यात की जाने वाली ज्यादातर चीजों का मूल्य डॉलर में चुकाया जाता है। यही वजह है कि डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत से पता चलता है कि भारतीय मुद्रा मजबूत है या कमजोर। अमेरिकी डॉलर को वैश्विक करेंसी इसलिए माना जाता है, क्योंकि दुनिया के अधिकतर देश अंतर्राष्ट्रीय कारोबार में इसी का प्रयोग करते हैं। यह अधिकतर जगह पर आसानी से स्वीकार्य है।
आप पर क्या असर
भारत अपनी जरूरत का करीब 80% पेट्रोलियम उत्पाद आयात करता है। रुपये में गिरावट से पेट्रोलियम उत्पादों का आयात महंगा हो जाएगा। इस वजह से तेल कंपनियां पेट्रोल-डीजल के भाव बढ़ा सकती हैं। डीजल के दाम बढ़ने से माल ढुलाई बढ़ जाएगी, जिसके चलते महंगाई बढ़ सकती है। इसके अलावा, भारत बड़े पैमाने पर खाद्य तेलों और दालों का भी आयात करता है। रुपये की कमजोरी से घरेलू बाजार में खाद्य तेलों और दालों की कीमतें बढ़ सकती हैं।
यह है सीधा असर
एक अनुमान के मुताबिक डॉलर के भाव में एक रुपये की वृद्धि से तेल कंपनियों पर 8,000 करोड़ रुपये का बोझ पड़ता है। इससे उन्हें पेट्रोल और डीजल के भाव बढ़ाने पर मजबूर होना पड़ता है। पेट्रोलियम उत्पाद की कीमतों में 10 फीसदी वृद्धि से महंगाई करीब 0।8 फीसदी बढ़ जाती है। इसका सीधा असर खाने-पीने और परिवहन लागत पर पड़ता है।
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